Thursday, November 6, 2008

झारखण्ड में बालिका शिक्षा बाईसाइकिल पर

अलोका
झारखण्ड में बालिका शिक्षा की स्थिति अब साइकिल पर आकर रह गयी हे। आदिवासीए दहिलत राज्य वाला झारखण्ड में बालिकाओं को शिक्षा संस्था तक पहुंचने के लिए साइकिल बांटी जा रही है। लड़कियां का इस माध्यम से स्कूल तक पहुंचा दिया गया हैं। साइकिल में बैइकर स्कू जलाने की अंकाक्षा मन में सरकार ने पूरी कर दी इससे हर गांव कस्बों की लड़कियां को स्कूल का मुहं देखने का मौका मिल गया। लेकिन स्कूल में उन्हें अपने उत्पाद के साथ वाली शिक्षा अब तक नहीं मिल पा रहीं है। हजारों की संख्या में शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियां भी अब अपने को सरकारी शिक्षा व्यवस्था से ना खुश है महज डिग्री भर की पढ़ाई के अलावा आगें का रास्ता उनके ंपास नहीं है। हजारों. हजार बालिकाओं को शिक्षा से जो कर एक बेरोजगारी पैदा करने वाली संस्था के नाम पर सरकारी स्कूल ही हैं। हजारों की संख्या में बालिकाओं को शिक्षा संस्थान पहुंचा कर सरकार अपनी वाह. वाही लूट रहीं है।जबकि सरकारी शिक्षण संस्थान से पढ़ने वाली बालिकाओं में आधी से अधिक लडकियां अधुरी पढ़ाई कर महानगरों में पलायन कर जा रहीं है। यह साफ हैं कि स्कूल में पहुंचने से ज्यादा जरूरी शिक्षा की गुणवता पर घ्यान देने की वह सरकार नहीं कर पा रहीं है। साइकिल बांटने से शिक्षण संस्थानों की गुणवता कैसे सरकार बढ़ा सकती यह आने वाला समय बतायेगा। 24 राज्यों वाला झारखण्ड में कई बालिकाओं को शिक्षा से जोने का हुआ है इस जुडने की प्रक्रिया में गुणकारी शिक्षा पीछे रह गये है। बालिका शिक्षा का गुणावता परिर्वन आया है। इस शिक्षा से उन बालिकाओं कितने लाभकारी है इसकी पूर्व योजना या पढ़ाई की उपयोगिता को दर किनार किया गया है। सरकार शिक्षा खेत्र में जनसंख्या बढ़ा सकती हैं किन्तु गुणवता शिक्षा के लिए सरकार के ओर से कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। सब कुछ पूराने ढ़ररे पर चल रहीं शिक्षा प्रणाली अब सिर्फ डिग्री देने योग्य ही रह गयी। शिक्षा से पलायन पर प्रभाव झारखण्ड में आधी आबाी की शिक्षा मिल रहीं वह भी आधी अधूरी । आधी से अधिक गांवों में 5वां या 7 वां कलास तक शिक्षा दी जाती है। गांव के अंदर 5वां से 7 वां कलास तक की पढ़ाई की व्यवस्था आज भी कायम है उच्च शिक्षा के लिए उसे गांव से बाहर जाना पड़ता हैं ऐसी स्थिति में शिक्षा से बालिका उच्च कलास तक एक या दो ही लोग पहुंच पा रहें हैं। बाकी बालिकाएं पलायन कर महानगर में काम की तलाश करने पहुंच जाती हैं। बेबेयानी मिंज गुमला के रहने वाली है उनके परिवार के अन्य सदस्य पढ़े लिखें है बेबेयानी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई कारण कि उनके बाहने गावं के बाहर शिक्षा ली हैं पिता की जीवित समय में परिवार में ऐसी व्यवस्था थी कि परिवार से गांव से बाहर जा कर लोग पढ़ सकें गांव में शिक्षा का स्तर काफी खराब है उसका मानना है हम ऐसे शिक्षा लेकर अपना समय बर्बाद करेगे इससे तो कही ज्यादा अच्छा महानगर में मेहनत मजदूर करें तो पेट पल जाएगा। शांति तिर्की बताती है गांव में शिक्षा का जो स्तर हैं उससे हमारा जीविका नहीं चल सकता नयी तकनीकि व्यवस्था से जोड़ने और उत्पादन के साथ जोडने वाली शिक्षा हमारे लिए उपयोगी है। गांव के उत्पाद घटे हे किसान अब श्रमिक बन गये किसान गांव में बचा ही नहीं । शिक्षा के नाम पर सरकार एक रूम बना देती है साइकिल बांट देती है इससे शिक्षा का स्तर नहीं बदलेगा। अन्धाधुन दौहन का क्षेत्र स्कूल वर्तमान झारखण्ड का गांव आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं है वहां के लोग अच्छी शिक्षा खरीद नहीं सकते प्रइभेट शिक्षा संस्थान में अन्धाधुन दौहन शुरू कर दी। सरकारी शिक्षा का गिरता स्तर ने प्रइभेट शिक्षा संस्थाओं को मौका दिया हैं शिक्षा को व्यवसायिकरण करने के लिए जिनते अग्रेजी शिक्षा संस्थान हैं वहा शिक्षा बेची जाती है। उस शिक्षा को खरीदने की क्षमता आदिवासी और दलित समाज नहीं खरीद सकतें है। शिक्षा को उत्पादन के साधन के साथ जाड़ने की जरूरत हमारा समाज की संस्कृति रहीं हैं कि जिस किसी कार्य को उत्पादन के साथ जोड़ कर करने पर वह स्वतः ही उसका विकास हो जाता हैं। लोग जुड जाते हैे भारत के आजादी के 60 साल बाद भी शिक्षा के क्षेत्र में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं आया है। पूंजीवादी व्यवस्था में शिक्षा पूंजीवादी समाज में शिक्षा का बाजार की वस्तु बन कर रह गयी है। सरकार इस स्तर शिक्षा को पहुचाने में खुद जिम्मेवार हैं। जहां सरकारी स्तर पर स्कूलों में पानीए बिजलीए प्रयोगशालाए पुस्तकालय का अभाव लगातार देखा गया है। वहां के शिक्षा स्तर की कल्पना हम कैसे कर सकते पूंजीवादी व्यवस्था ने प्राइभेट क्षेत्र में शिक्षा दी है तो खरीदने पर।

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