Saturday, November 8, 2008

कमसीन बनी श्रमशील।


नया राज्य
पर
जीवन रूका -रूका सा
दिमाग खाली पड़ी
कमसीन बनी श्रमशील
नगे पंाव
चुडा के पोटली
मट मैले कपडे+।
मन में आकंाक्षा।
सब पर भारी भूख
चली ट्रेन से
सूखे आंेठो को
आंसू से भींगाते
कल की चिन्ता
महानगर की गली
काम की तलाश
भटकन और भटकन
अन्ततः वही जूठन
की सफाई
खेतों- वनों की कुमारी रानी, बेटी, माईकमसीन
बनी रेजा- कुली- मेहरी
दाई बस
श्रम बेचने वाली श्रम’ाील

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